Skip to main content

हेल्थकार्ट के संस्थापक समीर माहेश्वरी की कहानी: मेहनत, लगन और उद्यमिता की मिसाल




अक्सर लोग मानते हैं कि बड़ी सफलता उन्हीं को मिलती है जिनके पास बड़ा नाम, या  बैंक बैलेंस होता है।
लेकिन हेल्थकार्ट (HealthKart) के संस्थापक और सीईओ समीर माहेश्वरी की कहानी इस सोच को पूरी तरह गलत साबित करती है। उन्होंने आईआईटी दिल्ली और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल जैसे नामी संस्थानों से पढ़ाई की है। आइए, जानते हैं समीर माहेश्वरी की इस प्रेरणादायक सफल यात्रा के बारे में।

हेल्थ कार्ट की नींव

1997 में आईआईटी से स्नातक करने के बाद, समीर माहेश्वरी अमेरिका चले गए और वहां के हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से पढ़ाई की और कुछ वर्षों तक इन्वेस्टमेंट बैंकिंग सेक्टर में काम किया। इसके बाद उन्होंने उद्यमिता (Entrepreneurship) में कदम रखने के उद्देश्य से भारत लौटने का निर्णय लिया।

यह भी पढें-  वीबा फूड्स ने कैसे FMCG मार्केट में क्रांति स्थापित किया..पढ़िए सफलता की अनोखी कहानी

सैन फ्रांसिस्को में रहने के दौरान उनकी मुलाकात प्रशांत टंडन से हुई। वहीं दोनों ने मिलकर भारत लौटकर उद्यमिता में हाथ आजमाने का फैसला किया। उस समय भारत में स्मार्टफोन का प्रसार तेजी से बढ़ रहा था और ई-कॉमर्स उद्योग अपनी शुरुआती उड़ान भर रहा था।

माहेश्वरी का कहना है कि, “हमारी स्वास्थ्य सेवा (Healthcare) और तकनीकी पृष्ठभूमि (Technology background) एक-दूसरे के पूरक थे, और हम हेल्थ टेक क्षेत्र को कुछ सार्थक और प्रभावशाली बनाना चाहते थे। इसी सोच के साथ हमने 2011 में हेल्थकार्ट (HealthKart) की स्थापना की — एक ऐसा प्लेटफॉर्म जो ई-कॉमर्स मॉडल के जरिए भारत में सबसे बड़ी ऑनलाइन फ़ार्मेसी बनने की क्षमता रखता था।”

इसके बाद दोनों ने फ़ार्मेसी से जुड़ी सभी प्रमुख श्रेणियों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। उन्हें यह भली-भांति पता था कि जैसे-जैसे नियामकीय स्पष्टता (regulatory clarity) आएगी, वे भविष्य में दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर भी विस्तार करेंगे।

समीर माहेश्वरी गुरुग्राम के रहने वाले हैं

समीर माहेश्वरी गुरुग्राम के रहने वाले हैं। वह ऐसे घर में पले-बढ़े, जहां हर चीज मेहनत और अपनी कमाई से ही हासिल करनी पड़ती थी। न कोई पारिवारिक विरासत थी, न आर्थिक सुरक्षा का सहारा। इसका मतलब था कि हमेशा बेहतर करने की जिम्मेदारी खुद पर ही थी, क्योंकि असफलता की हालत में कोई दूसरा सहारा मौजूद नहीं था।

इस कमी ने उन्हें निराश नहीं किया। बल्कि, उनमें लगनजुझारूपन और अपना रास्ता खुद बनाने का हौसला दिया। समीर का मानना है कि यही सच्चे जीवन अनुभव उनके भीतर वह प्रेरणा बने, जिन्होंने उन्हें उद्यमिता (Entrepreneurship) की राह पर आगे बढ़ाया।

समीर माहेश्वरी के बचपन में क्रिकेट बैट जैसी साधारण चीज भी यूं ही नहीं मिलती थी। उसे पाने के लिए उन्हें मैदान पर लगातार अच्छा प्रदर्शन कर अपनी योग्यता साबित करनी पड़ती थी। इस अनुभव ने उन्हें यह सिखाया कि असली मूल्य केवल पुरस्कार में नहीं, बल्कि उसे हासिल करने की पूरी प्रक्रिया में छिपा होता है।

जीवन में हुए इन्हीं अनुभवों ने उनके भीतर यह विश्वास मजबूत किया कि हर सार्थक उपलब्धि मेहनत से कमाई जाती है, न कि आसानी से मिलती है। यह सोच आज भी उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा है।
यह सीख इतनी गहराई से उनमें रच-बस गई कि समीर हर सफलता को अपनी लगन, परिश्रम और समर्पण का सच्चा परिणाम मानते हैं।

मिडिल क्लास पृष्ठभूमि से आने वाले समीर ने आज 4,500 करोड़ रुपये की कंपनी खड़ी की है, फिर भी उन्होंने अपनी जड़ों और सादगी को कभी नहीं छोड़ा। यही विनम्रता और अपनी पहचान से जुड़ाव उनकी कामयाबी का सबसे बड़ा रहस्य बना। उन्होंने वर्ष 2011 में हेल्थकार्ट (HealthKart) की स्थापना की। नवंबर 2024 तक कंपनी का मूल्य बढ़कर 4,500 करोड़ रुपये (लगभग 50 करोड़ डॉलर) तक पहुंच चुका था।

आज भी जमीन से  जुड़े व्यक्ति

आज भले ही समीर माहेश्वरी आर्थिक रूप से एक स्थिर और आरामदायक स्थिति में हों, लेकिन उन्होंने अपनी मध्यवर्गीय आदतों को अब तक संजोकर रखा है।




चाहे बात महंगे जूते खरीदने से पहले झिझकने की हो या सबसे अच्छे सौदे की तलाश में कई वेबसाइटें खंगालने की यह सब उनकी सोच और जीवन दृष्टिकोण का हिस्सा है, न कि केवल पैसों का मामला।

समीर इस गहराई से जुड़ी आदत को अपना “मिडिल-क्लास OS” (ऑपरेटिंग सिस्टम) कहते हैं — एक ऐसा आजीवन सिस्टम जो उनके सोचने, निर्णय लेने और काम करने के तरीके को लगातार प्रभावित करता रहता है।

उनका मानना है कि संघर्ष ने उन्हें जीवन का उद्देश्य दिया, और सीमित साधनों ने उनमें लचीलापन, जुझारूपन और दृढ़ता विकसित की।
उद्यमी बनने से बहुत पहले ही, जीवन की परिस्थितियों ने उन्हें मन और दृष्टिकोण से एक सच्चा उद्यमी बना दिया था।

समीर माहेश्वरी के लिए मध्यवर्गीय होना सिर्फ एक आर्थिक स्थिति नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है जो आत्मनिर्भरता, मेहनत और ज़मीन से जुड़े रहने की भावना पर आधारित है।



Comments

Popular posts from this blog

वीबा फूड्स ने कैसे FMCG मार्केट में क्रांति स्थापित किया..पढ़िए सफलता की अनोखी कहानी

   विराज बहल देश के जाने-माने उद्यमी हैं, जो शार्क टैंक इंडिया के चौथे सीजन में नए जज के रूप में शामिल हुए हैं। जजों के पैनल में अमन गुप्ता, अनुपम मित्तल, नमिता थापर, विनीता सिंह और पीयूष बंसल भी शामिल हैं। विराज की कहानी एक साधारण शुरुआत से लेकर एक बड़े फूड बिजनेस तक पहुंचने की है। उन्हें भारत के एफएमसीजी सेक्टर, विशेष रूप से सॉस बनाने वाली कंपनी वीबा फूड्स (Veeba Foods) के संस्थापक और प्रबंध निदेशक के रूप में जाना जाता है। 2013 में स्थापित वीबा फूड्स आज भारतीय फूड इंडस्ट्री का एक प्रमुख ब्रांड बन चुका है और इसने उद्योग को एक नई दिशा दी है। हालांकि, विराज का सफर कभी आसान नहीं रहा। उन्होंने अपने करियर में कई चुनौतियों का सामना किया, जिनमें शुरुआती असफलताएं और आर्थिक कठिनाइयां शामिल थीं। लेकिन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और संघर्षशीलता ने उन्हें सफलता के शिखर तक पहुंचाया। आइए, विराज बहल की प्रेरणादायक सफलता की कहानी को और गहराई से समझते हैं। घर बेचकर नए बिजनेस के लिए जुटाए पैसे विराज का फूड बिजनेस से जुड़ाव बचपन से ही था। वह अक्सर अपने पिता की फैक्ट्री जाया करते थे, जहां उन्होंने फूड ...

भाविश अग्रवाल ने कैसे OLA को बना दिया इंडिया का ब्रांड..पढ़िए रोचक यात्रा

  भारत ने हाल ही में एक बहुत बड़ा बदलाव देखा है, जो बेहद कम समय में हुआ। अब आप इंटरनेट के जरिए किराने का सामान मंगवा सकते हैं, खाना सीधे आपके दरवाजे तक पहुंच सकता है, और बिना गैस पेडल दबाए अपने शहर के सबसे दूरस्थ कोने तक पहुंच सकते हैं। ओला कैब्स, जिसे भाविश अग्रवाल ने सह-स्थापित किया था, अब ओला कंज्यूमर बन चुकी है। इसने भारत में ग्राहकों को लंबी कतारों में खड़े होने, घंटों तक इंतजार करने, या ऑटोवाले द्वारा अनदेखा किए जाने जैसी समस्याओं को हल किया है। इसके अलावा, इसने महिलाओं के लिए दिन के किसी भी समय यात्रा को सुरक्षित बना दिया है। फोटोग्राफी के शौकीन अग्रवाल का सपना भारतीयों को सुरक्षित और भरोसेमंद कैब सेवा प्रदान करना था, और उन्होंने यह सब कम उम्र में ही हासिल किया। अग्रवाल ओला के सह-संस्थापक और सीईओ हैं, और ओला इलेक्ट्रिक के एकमात्र संस्थापक भी हैं। इस सफल कैब सेवा का पहला प्रयोग दिल्ली की सड़कों पर किया गया। भाविश अग्रवाल ने अंकित भाटी के साथ मिलकर ओला की स्थापना की, और इसके बाद जो कुछ भी हुआ, वह इतिहास बन गया। प्रारंभिक जीवन भाविश अग्रवाल, जिन्हें अक्सर मारवाड़ी समझा जाता है,...

जीवन बीमा एजेंट ने कैसे बनाई साउथ की सबसे बड़ी रियल स्टेट कंपनी..पढ़िए गजब की कहानी।

   कड़ी मेहनत और लगन से दुनिया में कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। यह बात साबित की है दक्षिण भारत की प्रमुख रियल एस्टेट कंपनियों में से एक, हनी ग्रुप के सीएमडी, मुक्का ओबुल रेड्डी ने। उन्हें कोई विरासत में बिजनेस नहीं मिला था, बल्कि अपनी मेहनत और समर्पण के बल पर उन्होंने यह सफलता हासिल की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत इंश्योरेंस एजेंट के रूप में की और धीरे-धीरे सफलता की ऊँचाइयों को छुआ। आज उनकी कंपनी के दक्षिण भारत के कई शहरों में लगभग 500 प्रोजेक्ट चल रहे हैं और कंपनी में करीब पांच सौ कर्मचारी कार्यरत हैं।  मुक्का ओबुल रेड्डी ने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद 2003 में श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय से मार्केटिंग में एमबीए किया। 18 साल की उम्र तक आते-आते ओबुल ने प्रोफेशनल दुनिया में कदम रख लिया था। इतनी कम उम्र में सीखने और अनुभव प्राप्त करने के लिए ओबुल ने कुछ कंपनियों में डोर-टू-डोर सेल्स पर्सन के रूप में काम किया। यह भी पढ़ें-  150 रुपए की नौकरी से करोड़ों की संपत्ति तक..पढ़िए गरीब से अमीर बनने की प्रेरक घटना उनकी शुरुआत सेल्सपर्सन के रूप में हुई, और इ...