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रिकार्ड्स किए हुए कैसेट बेंचकर कैसे एक लड़का बन गया भारतीय संगीत का सरताज , पढ़िए उनसे जुड़ी कई रहस्यमयी कहानियां





गुलशन कुमार भारतीय फिल्म उद्योग का एक लोकप्रिय नाम है जिसने अपनी दूरदृष्टि की मदद  से संगीत की दुनिया को नई ऊंचाईयां दी। आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे बिजनेस मैन के बारे में जिसने रिकार्ड्स किए हुए सस्ते कैसेट बेंच कर ऐसा बड़ा मुकाम हासिल किया जिसे हासिल करने में इंसान को सदियों लग जाते हैं।

प्रारंभिक जीवन

गुलशन कुमार का जन्म दिल्ली में एक पंजाबी अरोड़ा परिवार में हुआ था। उनका नाम गुलशन दुआ था और उनके पिता दिल्ली के दरियागंज बाजार में एक फ्रूट जूस का कार्नर चलाते थे। गुलशन कुमार भी उनके साथ काम में हाथ बटांते थे। इस काम में गुलशन कुमार का मन ज्यादा दिन तक नही लगा और वह कुछ नया करने की सोचने लगे। वह संगीत के शौकीन थे और उन दिनों  संगीत ऑडियो कैसेट बहुत मंहगे बिकते थे उनकी क्वालिटी भी अच्छी नही होती थी। 

इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपनी दुकान के पास में ही एक दुकान किराए पर लिया और गाने रिकार्ड्स किए हुए सस्ते ऑडियो कैसेट बेचना शुरु कर दिया। वह गाने के कैसेट खरीद कर लाते थे और फिर उसी को रिकार्ड्स कर अपने नाम से बेचते थे। यह एक सामान्य शुरुआत थी लेकिन कुछ ही दिनों में लोगों को उनका यह ऑडियो कैसेट पसंद आने लगा और उन्हें अच्छा खासा मुनाफा होने लगा। इसके बाद उन्होंने खुद ही ऑडियो कैसेट बनाना शुरु कर दिया।

संगीत की दुनिया में कदम 

गुलशन कुमार का नाम जल्द ही लोगों के जुबान पर छाने लगा और वह शहर में जाना माना नाम हो गए।  उन्होंने अपने ऑडियो कैसेट के व्यवसाय को सुपर कैसेट इंडस्ट्रीज का नाम दिया जो आगे चलकर एक बड़ा नाम बना। इसी नाम से उन्होंने नोएडा में एक म्यूजिक कंपनी खोल ली । 

गुलशन कुमार 1970 के दशक में सस्ते दर पर अच्छे और गुणवत्ता वाले कैसेट बेचना शुरु किया यह उस जमाने के संगीत कंपनियों द्वारा खराब गुणवत्ता और मंहगे ऑडियो कैसेट के मुकाबले काफी अच्छा और सस्ता भी था। यही कारण था कि उनका कारोबार दिनोंदिन बढ़ता चला गया और आगे चलकर वह कैसेट का निर्यात भी करने लगे। गुलशन कुमार देखते ही देखते संगीत उद्योग में जानामाना नाम हो गए। कैसेट बेचने में सफलता प्राप्त करने के बाद उन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग यानि कि बॉलीवुड की ओर रुख किया। 

यह भी पढ़ें-  इन्वर्टर मैन कुंवर सचदेवा- कैसे घर-घर बेचने वाला लड़का बन गया इन्वर्टर मैन

बॉलीवुड में सफलती की कहानी

गुलशन कुमार की शानदार सफलता में चार चाँद तब लगे जब उन्होंने  मुंबई की ओर रुख किया। यहां कुमार ने फिल्मी संगीत के अलावा भक्ति संगीत में अपनी जोरदार पैठ बना ली। इसका भी मूल मंत्र वही था सस्ते और गुणवत्ता वाले संगीत कैसेट बेचना। 

फिल्म निर्माण में उन्होंने पहला कदम वर्ष 1989 में लाल दुपट्टा मलमल का नामक फिल्म बनाकर किया। इस फिल्म का संगीत काफी लोकप्रिय हुआ और फिल्म भी कामयाब रही। इसके बाद 1990 में प्रदर्शित फिल्म आशिकी ने सारे कीर्तिमान तोड़ दिए। राहुल राय और अनु अग्रवाल अभिनीत यह फिल्म अपने सुरीले गीतों के बूते नई बुलंदियों पर पहुंच गई। 

इसके बाद आई फिल्में बहार आने तक और जीना तेरी गली में  जैसी फिल्मों का संगीत भी काफी कामयाब रहा। अच्छे संगीत के बल पर गुलशन कुमार ने जल्द ही बॉलीवुड में खुद को संगीत के बादशाह के रुप में स्थापित कर लिया।



नई प्रतिभाओं का मौका

गुलशन कुमार एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने केवल अपनी सफलता पर ही ध्यान नही दिया बल्कि कई प्रतिभाओं को निखारने में अहम भूमिका निभाई। उनकी फिल्मों के संगीत के बल पर कई हस्तियों ने फिल्म जगत में अपना नाम स्थापित किया। कई फिल्मों में संघर्षरत सोनू निगम गुलशन कुमार की फिल्म मे गाए गाने की बदौलत बॉलीवुड में खास पहचान बनाने में सफल रहे।

सोनू निगम  के अलावा गुलशन कुमार ने संगीत की दुनिया को कई और प्रतिभावान गायक दिए जिनमें प्रमुख हैं कुमार शानू, अनुराधा पोडवाल और वदंना वाजपेई।

टी-सीरीज म्यूजिक कंपनी की स्थापना

गुलशन कुमार द्वारा स्थापित सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड जो कि उस समय भारत की सर्वोच्च संगीत कंपनी थी के तहत ही टी-सीरीज संगीत लेबल की स्थापना की गई। आज टी-सीरीज देश में संगीत और वीडियोज की सबसे बड़ी कंपनी है।

टी-सीरीज इस समय फिल्मी गानों के अलावा, रीमिक्स, पुराने गाने, भक्ति संगीत, नए जमाने के एलबम सहित अन्य तरह के संगीत बनाने का काम करती है। टी-सीरीज का बाजार भारत में लगभग 60  प्रतिशत है। इसके अलावा यह 6 महाद्वीपों के 24 से ज्यादा देशों में संगीत का निर्यात करता है। 

गुलशन कुमार की हत्या

12 अगस्त 1997 को मुबंई के अंधेरी में जीतेश्वर महादेव मंदिर के बाहर गुलशन कुमार की गोली मारकर हत्या कर  दी गई। उनके पास 5 और 8 अगस्त 1997 को जबरन पैसों के लिए धमकी भरे फोन आए थे और उन्होंने पैसे देने से मना कर दिया। 12 अगस्त को सुबह लगभग 10 बजकर 40 मिनट पर मंदिर से वापस आते वक्त गुलशन कुमार का सामना 3 हत्यारों से हुआ। शुरुआती गोली से गुलशन कुमार बच गए, उन्होंने आस-पास के लोगों से आश्रय मांगा लेकिन लोगों ने मना कर दिया। गुलशन कुमार के ड्राइवर ने मदद करने की कोशिश की तो उसके पैरों में गोली मार दी गई। इसके बाद गुलशन कुमार की ताबड़तोड़ गोली बरसा कर हत्या कर दी गई। 

कहा जाता है कि उनकी हत्या मुंबई के अंडरवर्ल्ड ने जबरन वसूली के नाम पर किया। खुफिया एजेंसियों की जांच में सामने आया कि अबु सलेम ने सिंगर गुलशन कुमार से 10 करोड़ रुपए की फिरौती देने के लिए कहा था लेकिन गुलशन कुमार ने मना करते हुए कहा कि इतने रकम से वह वैष्णों देवी में भंडारा कराएंगे। इस बात से नाराज होकर सलेम ने गुलशन कुमार को मारने की जिम्मेदारी दाऊद मर्चेंट उर्फ अब्दुल रऊफ और विनोद जगताप नाम के शार्प शूटरों की दी।

हालांकि मुबंई पुलिस ने हत्या का दोषी संगीत निर्देशक जोड़ी नदीम-श्रवण को माना. कहा जाता है कि सिंगर नदीम के इशारे पर ही गुलशन कुमार की हत्याा की गई। बाद में अब्दुल रऊफ नामक एक अंडरवर्ल्ड के गुर्गे ने गुलशन कुमार की हत्या के लिए पैसा प्राप्त करने की बात वर्ष 2001 में कबूल लिया। पर्याप्त सबूत न होने के कारण 2009 में मृत्यु दंड की जगह अब्दुल रऊफ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 

गुलशन कुमार के बिना भारतीय संगीत साम्राज्य अधूरा प्रतीत होता है, उन्होंने अपनी सोच को एक ऐसा साकार रुप दिया जिसे हासिल करने में लोगों को कई सौ वर्ष लग जाते हैं।



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