Skip to main content

भारत की आजादी के लिए धन लुटाने वाला स्वतंत्रता सेनानी, जिसने अपने बिजनेस के माध्यम से भारतीयता की नई मिसाल कायम की


बिड़ला ग्रुप भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक संस्थानों में से एक है जिसने कई उद्यमों के माध्यम से सफलता हासिल की है।  बिड़ला ग्रुप की सफलता का एक मुख्य कारण व्यवसाय के विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करना है। उन्होंने अपने कारोबार को तेजी से विस्तारित किया और विभिन्न क्षेत्रों में नए उद्यमों के साथ नए बाजार खोजे हैं। इससे उन्हें अधिक मुनाफे कमाने का मौका मिला और उनकी कंपनियों को नए उच्च स्तर के विकास तैयार करने में मदद मिली। घनश्याम दास बिड़ला बिड़ला समूह के संस्थापक थे। आज हम story behind the success के माध्यम से घनश्याम दास बिड़ला के बारे में बात करने जा रहे हैं।

घनश्याम दास बिड़ला

घनश्याम दास बिड़ला भारतीय स्वाधीनता सेनानी थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया । उनका जन्म 10 अप्रैल 1894 को राजस्थान के झूंझुनू जिले के पिलानी ग्राम में हुआ था। वह एक मारवाड़ी परिवार से तालुक रखते थे और उनके दादा शिव नारायण बिड़ला ने मारवाड़ी समुदाय के पारंपरिक व्यवसाय साहूकारिता (ब्याज पर पैसे देना) से हटकर अलग क्षेत्रों में बिजनेस का विकास किया।

घनश्याम बिड़ला के पिता बलदेव दास बिड़ला ने अफीम के बिजनेस में अच्छा पैसा कमाया और घनश्याम दास बिड़ला के बड़े भाई जुगल किशोर बिड़ला ने भी इसी बिजनेस में हाथ आजमाया और अच्छा धन अर्जित किया । घनश्याम दास ने अपने ससुर महादेव सोमानी के मदद से दलाली में भी अच्छा नाम कमाया और बिजनेस के कई गुर सीखे। घनश्याम दास बिड़ला ने बी. के. के. एम. बिड़ला समूह की स्थापना की।

उद्योगों का विस्तार

घनश्याम दास बिड़ला को बिजनेस और उद्योग विरासत में मिली थी। इसके विस्तार के लिए उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश किया। वह परिवार के परंपरागत साहूकारी के व्यवसाय को निर्माण और उद्योग की ओर मोड़ना चाहते  थे। इसी सिलसिले में वह कोलकाता चले गए और वहां जाकर एक जूट कंपनी की स्थापना की ।

यह भी पढ़ें- चाय सुट्टा बार! कैसे एक आम लड़के ने खड़ा कर दिया करोड़ो का साम्राज्य, पढ़िए चाय से जुड़ी रोचक कहानी

बंगाल में पहले से ही स्थापित यूरोपियन औऱ ब्रिटिश व्यापारियों ने घनश्याम दास बिड़ला को परेशान करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने हार नही मानी और व्यापार में टिके रहे।  पहले तो उन्हें कुछ खास सफलता नही मिली लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के समय जब समूचे ब्रिटिश साम्राज्य में आपूर्ति की कमी होने लगी तो घनश्याम दास  बिड़ला का बिजनेस काफी तेजी से आगे बढ़ा।

बिड़ला ब्रदर्स की स्थापना

घनश्याम दास बिड़ला सन 1919 में 50 लाख की पूंजी से बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेड की स्थापना की और उसी वर्ष ग्वालियर में एक मिल की भी स्थापना की गई। उन्हें सन् 1926 में ब्रिटिश इंडिया के केन्द्रीय विधान सभा के लिए चुना गया और महात्मा गांधी के साथ मिलकर सन् 1932 में दिल्ली में हरिजन सेवक संघ की स्थापना की ।

हिंदुस्तान मोटर्स की स्थापना

1940 के दशक में घनश्याम दास बिड़ला ने भारत में बड़ी क्रांति की शुरुआत की जब हिंदूस्तान मोटर्स की स्थापना की गई। उन्होंने देश की आजादी के बाद कई यूरोपियन कंपनियों को खरीदकर चाय और टेक्सटाइल उद्योग में निवेश किया। घनश्याम दास ने कंपनी का विस्तार सीमेंट, रसायन, रेयान और स्टील पाइप जैसे क्षेत्रों में भी किया।

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान घनश्याम दास बिड़ला को एक ऐसे व्यवसायिक बैंक स्थापित करने का विचार आया जो पूर्णत: भारतीय पूंजी और प्रबंधन से बना हो। इस प्रकार यूनाइटेड कमर्शियल बैंक की स्थापना सन 1943 में कोलकाता में की गई। यह भारत के सबसे पुराने व्यवसायिक बैकों में से एक है और इसका नाम अब यूको बैंक हो गया है।


1945 में घनश्याम दास बिड़ला के पास 20 कंपनियां थी और 1962 तक उनके पास 150 कंपनियां थी वह भी किसी सरकारी मदद के। घनश्याम दास बिड़ला गांधी जी और विंस्टन चर्चिल से काफी प्रभावित थे । राजनीति में उनकी काफी रुचि थी और खादी आंदोलन में उन्होंने अपना काफी समय समर्पित किया। बिड़ला ने स्वतंत्रता संग्राम के बाद भी राजनीति में अपनी भूमिका निभाई। वे भारतीय जनता पार्टी के सह संस्थापक में से एक थे ।

प्रमुख व्यवसाय

घनश्याम दास बिड़ला समूह का मुख्य व्यवसाय कपड़ा, फिलामेंट यार्न, सीमेंट, रासायनिक पदार्थ, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्यूमिनियम क्षेत्र में है। कुछ अग्रणी कंपनियां ग्रासिम इंडस्ट्रीज और सेंचुरी टेक्सटाइल है। बिड़ला समूह  का नेतृत्व अब उनके बेटे कर रहे हैं। इस समूह का बिजनेस दक्षिण-पूर्वी एशिया और अफ्रीका में भी फैला हुआ है ।

भारत सरकार ने सन् 1957 में घनश्याम दास बिड़ला को पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया। उनका  निधन जून 1983 में हुआ ।


Comments

Popular posts from this blog

एक छोटे से कमरे से शुरु हुई वेबसाइट कैसे बन गई अरबों डॉलर की कंपनी, पढ़िए फ्लिपकार्ट के कामयाबी की कहानी ।

  फ्लिपकार्ट भारत की एक प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनी है जिसपर हम ऑनलाइन कुछ भी खरीद सकते हैं वह भी घर बैठे ।  फ्लिपकार्ट आज के समय में देश की सबसे सफल कंपनियों में से एक है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस कंपनी की शुरुआत एक कमरे के फ्लैट से हुई थी। जब कोई एक छोटे से कमरे से अपने बिजनेस की शुरुआत करता है तो वह शायद ही यह सोचता हो कि उसका बिजनेस इतने कम निवेश के बाद भी एक समय अरबों की कंपनी बन जाएगी। फ्लिपकार्ट का नाम भी कुछ उन्ही स्टार्टअप में से है जिनकी शुरुआत महज ही कुछ रुपयों से हुई थी लेकिन आज उस कंपनी का टर्नओवर अरबों में है।  तो आज हम Story behind the Success के माध्यम से आपको बताने जा रहें हैं कैसे सचिन और बिन्नी बसंल ने  फ्लिपकार्ट को नई बुलंदियों पर पहुंचाया। Flipkart के शुरुआत की कहानी Flipkart भारत की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों में से एक है। Flipkart की शुरुआत 2007 में Sachin Bansal और Binny Bansal द्वारा बंगलोर में की गई थी। दोनों मित्र IIT दिल्ली के पूर्व छात्र थे और उन्हें इंजीनियरिंग में दिलचस्पी थी। Flipkart की शुरुआत एक ऑनलाइन पुस्तकालय के रूप में हुई थी...

इन्वर्टर मैन कुंवर सचदेवा: कैसे घर-घर पेन बेचने वाला लड़का बन गया इन्वर्टर मैन, पढ़िए रोचक किस्सा

  इन्वर्टर मैन कुंवर सचदेवा लगन और इच्छा शक्ति इंसान के पास ऐसे दो औजार हैं जिनके बल पर वह दुनिया की किसी भी चीज को पा सकता है। पूरे दृढ़ इच्छा और लगन के साथ कोई भी काम किया जाए तो सफल होने से कोई नही रोक सकता। इसके अलावा धैर्य इंसान को विपरीत परिस्थितियों में भी टिके रहने का साहस देता है। परिस्थितियां चाहे जैसी हो लगातार आगे बढ़ता रहना चाहिए। कुछ ऐसी ही कहानी है Su-Kam Inverter के जनक कुंवर सचदेवा की। जिन्होंने आर्थिक अभाव को कभी भी सफलता की राह में आड़े नही आने दिया। आज यह कंपनी दुनिया के करीब 70 से ज्यादा देशों में कारोबार कर रही है । कंपनी का टर्नओवर करीब 29 बिलियन डॉलर है। तो आप जान ही गए होगें की आज हम बात करने वाले हैं कुंवर सचदेवा की। प्रारंभिक जीवन कुंवर सचदेवा का जन्म 1962 में दिल्ली के एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके तीन भाई हैं और पिता रेलवे में सेक्शन ऑफिसर थे। उस समय सेक्शन ऑफिसर कोई बड़ी पोस्ट नही हुआ करती थी। इस लिहाज से घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी। यही कारण था कि कुंवर सचदेवा जब पांचवी कक्षा में थे तब उनके पिता ने उन्हें प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्क...

जानिए कैसे दो दोस्तों ने एक छोटे से फूडलेट से Zomato को बना दिया फेमस फूड डिलीवरी ब्रांड ।

ऑनलाइन फूड आजकल फैशन बन चुका है हर कोई ऑनलाइन ऑर्डर कर शांति से घर बैठ कर खाना चाहता है क्योंकि इंसान होटल में जाकर इंतजार करने से अच्छा समझता है कि उसका खाना घर में मिल जाए। ऑनलाइन फूड डिलिवरी वेबसाइट जोमेटो इस समय हर किसी के जुबान पर है। क्या आप जानना चाहते हैं कि कैसे Zomato ने ऑनलाइन फूड डिलिवरी सिस्टम को इतना आसान बनाया जिससे कुछ ही मिनटों में लोग अपने घर में खाने की डिलिवरी रिसीव कर पाते हैं। जोमेटो कंपनी की शुरुआत कैसे हुई जोमेटो कंपनी की शुरुआत 2010 में की गई थी और इसे शुरु करने का श्रेय दीपेंदर गोयल को जाता है। ऑनलाइन फूड डिलीवरी करने वाली कंपनी जोमेटो आज 24 देशों के 10 हजार शहरों में लोगों को खाना डिलिवर कर रही है। यह दुनिया के सबसे बड़ी फूड डिलिवरी कंपनियों में से एक है। दीपेंदर पंजाब के एक मध्यमवर्गीय परिवार से तालुक रखते हैं उनका मन पढ़ाई में नही लगता था यही वजह थी की वह कक्षा 6वीं और 11वीं में फेल हो गए थे। हालांकि उन्हें ऐहसास हुआ की पढ़ाई से ही कुछ बना जा सकता है। इसीलिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और IIT में सलेक्ट हो गए । IIT से 2006 में पासआउट होने के बाद दीपेंदर ब्रेन ए...