Skip to main content

जानिए कैसे दो दोस्तों ने एक छोटे से फूडलेट से Zomato को बना दिया फेमस फूड डिलीवरी ब्रांड ।




ऑनलाइन फूड आजकल फैशन बन चुका है हर कोई ऑनलाइन ऑर्डर कर शांति से घर बैठ कर खाना चाहता है क्योंकि इंसान होटल में जाकर इंतजार करने से अच्छा समझता है कि उसका खाना घर में मिल जाए। ऑनलाइन फूड डिलिवरी वेबसाइट जोमेटो इस समय हर किसी के जुबान पर है। क्या आप जानना चाहते हैं कि कैसे Zomato ने ऑनलाइन फूड डिलिवरी सिस्टम को इतना आसान बनाया जिससे कुछ ही मिनटों में लोग अपने घर में खाने की डिलिवरी रिसीव कर पाते हैं।

जोमेटो कंपनी की शुरुआत कैसे हुई

जोमेटो कंपनी की शुरुआत 2010 में की गई थी और इसे शुरु करने का श्रेय दीपेंदर गोयल को जाता है। ऑनलाइन फूड डिलीवरी करने वाली कंपनी जोमेटो आज 24 देशों के 10 हजार शहरों में लोगों को खाना डिलिवर कर रही है। यह दुनिया के सबसे बड़ी फूड डिलिवरी कंपनियों में से एक है।

दीपेंदर पंजाब के एक मध्यमवर्गीय परिवार से तालुक रखते हैं उनका मन पढ़ाई में नही लगता था यही वजह थी की वह कक्षा 6वीं और 11वीं में फेल हो गए थे। हालांकि उन्हें ऐहसास हुआ की पढ़ाई से ही कुछ बना जा सकता है। इसीलिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और IIT में सलेक्ट हो गए ।

IIT से 2006 में पासआउट होने के बाद दीपेंदर ब्रेन एंड कंपनी में नौकरी करने लगे । रोजाना की तरह दीपेंदर एक दिन अपने ऑफिस के कैंटीन में बैठे हुए थे तभी उन्होंने देखा कि मेन्यू कार्ड से खाना ऑर्डर करने के लिए लोगों की कतार लगी हुई है। उनके दिमाग में उसी समय खयाल आया कि क्यों न इस मेन्यू कार्ड को ऑनलाइन डाला जाय और उन्होंने उसी समय मेन्यू कार्ड को स्कैन कर उसे ऑनलाइन कर दिया । उनका यह आइडिया लोगों को पसंद आया ।

फूडलेट की शुरुआत

दीपेंदर के मोबाइल में दिए मेन्यू 'फूडलेट' की वजह से कैंटीन मे लोगों को लंबी कतार नही लगानी पड़ती थी वह रेस्टोरेंट पहुंच कर तुरंत खाना ऑर्डर कर सकते थे क्योंकि उन्हें मेन्यू पता था। यहां से दीपेंदर को काफी अच्छा रिस्पांस मिला यही वजह थी कि उन्होंने पूरे शहर में इसे शुरु करने का फैसला लिया। इसके लिए दीपेंदर ने फूडलेट नाम की वेबसाइट भी बनाई लेकिन जिस बेहतर रिस्पांस की उम्मीद थी वह नही मिल सकी। ऐसे में उनके दिमाग में एक आइडिया आया और अपनी पत्नी के संग दीपेंदर दिल्ली के सभी रेस्टोरेंट में जाकर उनका मेन्यू अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना शुरु कर दिया।

यह भी पढ़ें- भारत की आजादी के लिए धन लुटाने वाला स्वतंत्रता सेनानी, जिसने अपने बिजनेस के माध्यम से मिसाल कायम की ।

राह आसान नही थी

इसके बाद भी दीपेंदर को कुछ खास रिस्पांस नही मिला तो उन्हें लगा कि कंपनी के नाम में कुछ दिक्कत है जिसकी वजह से उन्होंने फूडलेट का नाम बदलकर foodiebe.com कर दिया. दीपेंदर की यह तरकीब भी काम नही आई । उन्हें समझ नही आ रहा था कि क्या किया जाय, इसी बीच उनकी मुलाकात पंकज चड्ढा से हुई। पंकज चड्ढा भी दीपेंदर के साथ IIT से पढ़े हुए थे। पंकज ने टेक्नीकल मामले में कुछ ऐसी जुगाड़ लगाई कि फूडीबे वेबसाइट का ट्रैफिक अचानक 3 गुना बढ़ गया ऐसे में फूडीबे के मालिक दीपेंदर ने पंकज को कंपनी का को-फाउंडर बनने का ऑफर दिया । इस तरह 2008 में फूडीबे को पकंज का साथ मिल गया और दोनों ने मिलकर कंपनी को नई ऊंचाईयां दी।

मार्केट में कंपीटीशन तगड़ा था लेकिन दोनों ने काफी मेहनत कर धीरे-धीरे कंपनी का नाम आगे बढ़ाने मे कामयाब रहे । तब उनकी वेबसाइट पर रेस्टोरेंट मालिक खुद ही अपना मेन्यू कार्ड जोड़ने लगे। 2008 के आखिर तक उनके वेबसाइट पर 1400 से अधिक रेस्टोरेंट रजिस्टर हो चुके थे । यह नंबर केवल दिल्ली एनसीआर का था इसके बाद कंपनी मुंबई और कोलकाता में अपनी पैठ बनाने में लग गई। दीपेंदर और पंकज को अब कंपनी पर ज्यादा फोकस करने की जरुरत थी और दोनों ने अपनी कंपनी छोड़ दी ।

फूडीबे से वेबसाइट का नाम जोमेटो किया गया

कंपनी काफी अच्छा ग्रो कर रही थी, 2010 में इंफोएज के फाउंडर ने Foodiebe में एक मिलियन डॉलर का निवेश किया इसके बाद कई निवेश करने वाली कंपनियों की लाइन लग गई । दीपेंदर और पंकज की मेहनत रंग ला रही थी सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन एक दिन फूडीबे के आखिरी चार अक्षर को लेकर एक बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी ईबे ने फूडीबे को लीगल नोटिस भेज दिया। हालांकि फूडीबे के नाम को बदलने को लेकर पहले से ही काम चल रहा था ।

नोटिस मिलने के 5 दिन बाद कंपनी ने फूडीबे का नाम बदल कर जोमेटो (Zomato) कर दिया। नाम बदलते ही कंपनी का कायापलट हो गया पूरे भारत में जोमेटो लोगों की जुबान पर छा गया। दीपेंदर ने वेबसाइट को एक मेन्यू कार्ड से बढ़ाकर रेस्टोरेंट से कनेक्ट करना शुरु कर दिया जिससे लोगों को अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट से खाना ऑर्डर करने का मौका मिला ।



अब लोग Zomato की वेबसाइट पर जाकर अपनी पसंद का खाना ऑर्डर कर सकते हैं। आपको बस अपना स्मार्टफोन उठाना है और जोमेटो के ऐप से अपने मनपसंद का डिश चयन कर पेमेंट करना है । कुछ ही मिनटों में आपका पसंदीदा खाना आपके दरवाजे पर पहुंच जाएगा। सबसे अच्छी बात यह है कि इन सारे प्रोसेस में आपको बहुत सारे ऑफर्स भी मिलते हैं।

विदेशों में बजने लगा जोमेटो का डंका

दीपेंदर और पंकज का कमाल था कि 2012 में कंपनी टर्की और ब्राजील तक पंहुच गई । इस समय कंपनी की पहुंच 25 से ज्यादा देशों में है जिसमें न्यूजीलैंड, श्रीलंका, कतर, फिलीपींस, यूएई, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया आदि देश शामिल हैं ।

खबर के अनुसार 2017-18 में जोमेटो का कुल रेवेन्यू 487 करोड़ रुपए था जो 2020-21 में बढ़कर 2743 करोड़ रुपए हो गया। आज Zomato विश्व की नंबर एक फूड डिलीवरी कंपनियों में से एक है। बढ़ती ग्रोथ के साथ Zamato ने अपना ऐप भी लांच कर दिया। इसके बाद लोगों ने इसका ज्यादा से ज्यादा यूज करना शुरु कर दिया

जोमेटो आधुनिक और अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों को उपलब्ध कराती है और उन्हें ऑनलाइन खरीदारी करने का विकल्प देती है। यह लाखों लोगों को उनकी खरीदारी की जरूरतों को पूरा करने में मदद करता है और यही Zomato की सफलता का राज है ।


Comments

Popular posts from this blog

इन्वर्टर मैन कुंवर सचदेवा: कैसे घर-घर पेन बेचने वाला लड़का बन गया इन्वर्टर मैन, पढ़िए रोचक किस्सा

  इन्वर्टर मैन कुंवर सचदेवा लगन और इच्छा शक्ति इंसान के पास ऐसे दो औजार हैं जिनके बल पर वह दुनिया की किसी भी चीज को पा सकता है। पूरे दृढ़ इच्छा और लगन के साथ कोई भी काम किया जाए तो सफल होने से कोई नही रोक सकता। इसके अलावा धैर्य इंसान को विपरीत परिस्थितियों में भी टिके रहने का साहस देता है। परिस्थितियां चाहे जैसी हो लगातार आगे बढ़ता रहना चाहिए। कुछ ऐसी ही कहानी है Su-Kam Inverter के जनक कुंवर सचदेवा की। जिन्होंने आर्थिक अभाव को कभी भी सफलता की राह में आड़े नही आने दिया। आज यह कंपनी दुनिया के करीब 70 से ज्यादा देशों में कारोबार कर रही है । कंपनी का टर्नओवर करीब 29 बिलियन डॉलर है। तो आप जान ही गए होगें की आज हम बात करने वाले हैं कुंवर सचदेवा की। प्रारंभिक जीवन कुंवर सचदेवा का जन्म 1962 में दिल्ली के एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके तीन भाई हैं और पिता रेलवे में सेक्शन ऑफिसर थे। उस समय सेक्शन ऑफिसर कोई बड़ी पोस्ट नही हुआ करती थी। इस लिहाज से घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी। यही कारण था कि कुंवर सचदेवा जब पांचवी कक्षा में थे तब उनके पिता ने उन्हें प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल म

एक साधारण परिवार में जन्मे गौतम अडानी कैसे बने दुनिया के तीसरे सबसे अमीर शख्स, जानिए उनके बेहतरीन किस्से

आज हम Story behind the Success के अंतर्गत एक ऐसे शख्स के बारे में बात करेगें जिन्होंने अपनी बिजनेस स्ट्रेटजी से पूरी दुनिया को लोहा मनवाया। गौतम अडानी आज से कुछ सालों पहले तक एक सामान्य बिजनेस मैन की श्रेणी में थे लेकिन उन्होंने भारतीय बिजनेस जगत में पिछले कुछ सालों में ऐसे बेंच मार्क स्थापित किए हैं जिसकी कायल पूरी दुनिया हो चुकी है। गौतम अडानी के बारे में कहा जाता है कि एक वक्त ऐसा था जब आर्थिक तंगी के कारण उन्हें पढ़ाई तक छोड़नी पड़ी थी लेकिन आज वह एयरपोर्ट से लेकर बंदरगाह और कोयले से लेकर घर में इस्तेमाल होने वाले तेल तक के बेताज बादशाह हैं। तो क्या है एक सफल उद्यमी गौतम अडानी के कामयाबी के राज आइए जानते हैं। प्रारंभिक जीवन गौतम अडानी का जन्म अहमदबाद के निकट थराड़ कस्बे में 24 जून 1962 को हुआ था। वह सात भाई-बहन थे। बहुत कम लोगो को यह पता होगा कि अडानी का परिवार आर्थिक रूप से बहुत कमजोर था, यही कारण था कि उनका परिवार अहमदाबाद के पोल इलाके के शेठ चॉल में रहता था। गौतम अडानी ने अहमदाबाद के सेठ चिमनलाल नागदास विद्यालय से स्कूली शिक्षा हासिल की. हांलाकि आर्थिक तंगी के कारण वह ज्यादा पढ़ा

कैसे नोटबंदी के दौर ने बदल दी पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा की किस्मत, पढ़िए उनसे जुड़े कुछ अनसुने किस्से..

  कहावत है कि कुछ कर गुजरने का जुनून इंसान को दुनिया से अलग पंक्ति में ला कर खड़ा कर देता है। विजय शेखर शर्मा भारत के उन चुनिंदा लोगों मे से हैं जिन्होंने दुनिया से अलग खड़े होकर बता दिया कि अगर इंसान के अंदर जज्बा हो तो वह कुछ भी कर सकता है। आज हम बात करने वाले हैं पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा के बारे  में जिन्होंने असफलताओं से लड़ कर कामयाबी के उस मुकाम पर पहुंचे जहां तक पहुंचना केवल सपने देखने जैसा होता है। प्रारंभिक जीवन पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिताजी एक स्कूल टीचर जबकि माता गृहिणी थीं।  विजय शेखर शर्मा की शुरुआती पढ़ाई अलीगढ़ के कस्बे हरदुआगंज के एक हिंदी मीडियम स्कूल में हुई। हिंदी मीडियम यहां इस लिए बता रहा हूं , क्योंकि हमारे देश में अधिकतर लोगों को यह भ्रम है कि इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य उज्जवल होता है। इसके बाद विजय शेखर शर्मा ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गए और दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से बैचलर ऑफ इंजीनिंयरिंग की डिग्री इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्य