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“नया उजाला, चार बूंदों वाला: उजाला ब्रांड के निर्माता एम.पी. रामचंद्रन की प्रेरणादायक कहानी

आया नया उजाला, चार बूंदों वाला! 90 के दशक का यह मशहूर विज्ञापन वाक्य शायद ही किसी ने न सुना हो। कपड़ों को चमकदार सफेदी देने वाला  उजाला नील  वर्षों से भारतीय घरों का भरोसेमंद नाम रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि  उजाला नील  बनाने वाली कंपनी और इसके संस्थापक कौन हैं? इस लोकप्रिय ब्रांड के पीछे हैं  एम.पी. रामचंद्रन , जिनकी प्रेरणादायक कहानी यह साबित करती है कि दृढ़ निश्चय और मेहनत से कोई भी व्यक्ति बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर सकता है। रामचंद्रन ने अपने भाई से 5000 रुपये उधार लेकर जो छोटी सी अस्थायी फैक्ट्री शुरू की थी, वह आज लगभग 1800 करोड़ रुपये के वार्षिक कारोबार वाली मल्टीलेवल ब्रांड कंपनी बन चुकी है। उन्होंने अनोखे उत्पाद तैयार किए और अनेक नवाचार किए। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का ही परिणाम है कि आज ज्योति लेबोरेटरीज एक प्रतिष्ठित मल्टी ब्रांड कंपनी के रूप में स्थापित है। प्रारंभिक जीवन एम. पी. रामचंद्रन का का जन्म केरल के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। बचपन से ही वे पढ़ाई में मेधावी और जिज्ञासु स्वभाव के थे। उनका झुकाव विज्ञान और प्रयोगों की ओर रहा, जिससे उन...

"शिक्षा नहीं, इरादा बड़ा: 5वीं फेल कारोबारी जो कर्मचारियों को देता है महंगे गिफ्ट"

 


 सावजी ढोलकिया, श्री हरि कृष्‍णा एक्‍सपोर्ट्स के चेयरमैन हैं और हर साल दिवाली के समय सुर्खियों में आते हैं। इस दिन वे अपने कर्मचारियों को महंगे गिफ्ट्स प्रदान करते हैं, जिनमें कार, घर और बेशकीमती आभूषण शामिल होते हैं। वे 1995 से यह परंपरा निभा रहे हैं और अपने कर्मचारियों को अपने परिवार के सदस्य के रूप में मानते हैं। इसके अलावा, वह हर साल उनके माता-पिता को एक टूर पर भी भेजते हैं। अब तक उन्होंने 4000 से अधिक लोगों को कार, घर और आभूषण वितरित किए हैं। आइए, जानते हैं इस महान दानवीर के बारे में।

13 साल की उम्र में छोड़ द‍िया स्‍कूल 

सावजी ढोलकिया गुजरात के अमरेली जिले के दुधाला गांव के निवासी हैं। उन्हें पढ़ाई में रुचि नहीं थी, इसलिए केवल 13 साल की उम्र में ही उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और सूरत आकर एक फैक्ट्री में काम करने लगे। उस समय उन्हें महज 180 रुपये प्रति माह सैलरी मिलती थी, जिसमें से 140 रुपये केवल खाने-पीने पर ही खर्च हो जाते थे। सावजी ढोलकिया ज्यादा पैसे कमाने की इच्छा रखते थे, इसलिए उन्होंने अपने दोस्त के साथ हीरा घिसने का काम शुरू किया। उन्होंने इस काम में 10 साल तक मेहनत की। इस अनुभव के बाद, उन्होंने अपनी खुद की कंपनी शुरू करने का निर्णय लिया और 1991 में "हरि कृष्ण" नाम की कंपनी की स्थापना की।

सावजी भाई का जिंदगी के प्रति सोचने का नजरिया कितना अलग है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक बार वह अपने बेटे द्रव्या को जिंदगी का सबक सिखाने के लिए उसे एक महीने के लिए केरल भेज दिया। इस दौरान उन्होंने केवल सात हजार रुपये दिए। द्रव्या ने भले ही अमेरिका से एमबीए किया हो, लेकिन सावजी भाई चाहते थे कि उनका बेटा असल जिंदगी में प्रबंधन के गुण सीख सके।

यहां भी रखीं तीन शर्तें

सावजी भाई ने द्रव्या के लिए तीन सख्त शर्तें तय कीं: एक जगह एक हफ्ते से ज्यादा काम नहीं करनाताकि वह विभिन्न अनुभव हासिल कर सके। दूसरा सात हजार रुपये केवल आपात स्थिति में खर्च करना रोजमर्रा के खर्चों के लिए उसे वहीं पैसे कमाने थे। और तीसरा कहीं भी पिता के नाम या प्रभाव का इस्तेमाल नहीं करना। 

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द्रव्या ने इन शर्तों का पालन करते हुए केरल में फूड आउटलेट्स से लेकर जूतों की दुकानों तक में काम किया। सावजी भाई ने करीब 12 साल पहले अपने भाई के बेटों को भी इसी तरह दूसरे शहरों में भेजकर असल जिंदगी के अनुभव हासिल करने का मौका दिया था।

सावजी भाई कहते हैं, "हम बच्चों को सुबह जल्दी उठने, कम खर्च करने और लोगों से अच्छा व्यवहार करने की सीख देते हैं। लेकिन जब उनके पास पर्याप्त पैसे होते हैं और उन्होंने कभी आर्थिक परेशानियां नहीं देखी होतीं, तो संवेदनाओं, मानवीय मूल्यों और असल जिंदगी के संघर्षों की समझ के लिए ऐसे कदम उठाने जरूरी हो जाते हैं। अगर जिंदगी में ऐसे सबक मिल जाएं, तो इंसान खुद-ब-खुद परिस्थितियों का सामना करना सीख जाता है।"

शुरुआत में कंपनी की बिक्री बहुत कम थी, लेकिन मार्च 2014 तक आते-आते कंपनी का टर्नओवर 400 करोड़ रुपये से भी ज्यादा हो गया। इस कंपनी में 6,000 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। 90 के दशक में जब उनकी बिक्री खास नहीं थी, तब भी वे अपने कर्मचारियों को खुश रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे।

कर्मचारियों को देते हैं मंहगे गिफ्ट

1995 में, ढोलकिया ने अपने कर्मचारियों को 3 कारें दी थीं। अब तक, वे 4000 से अधिक लोगों को कार, घर या गहने दे चुके हैं। कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों के माता-पिता को हर साल एक 15 दिन का टूर दिया जाता है, जिसमें ढोलकिया खुद 10 दिन उनके साथ रहते हैं। वह अपने कर्मचारियों के माता-पिता की सेवा इस प्रकार करते हैं जैसे वे अपने खुद के माता-पिता की करते हैं। उनका मानना है, "देना चालू करो, मिलना चालू हो जाएगा।"


 

पद्मश्री से नवाजे जा चुके हैं

सावजी ढोलकिया को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वह डायमंड जूलरी बनाकर विदेशों में भी निर्यात करते हैं। उनकी कंपनी की डायमंड जूलरी 50 से अधिक देशों में जाती है, जिनमें अमेरिका, बेल्जियम, संयुक्त अरब अमीरात, हांगकांग और चीन शामिल हैं। कंपनी ने अपनी गोल्डन जुबली के अवसर पर कर्मचारियों को बोनस देने के लिए 51 करोड़ रुपये खर्च किए थे।

सावजी ढोलकिया 2015 में सुर्खियों में आ गए थे। उस साल दिवाली के मौके पर उन्होंने अपने 1200 कर्मचारियों को जूलरी, 200 फ्लैट और 491 कार गिफ्ट की थीं। इसके पहले, 2014 में भी उन्होंने कर्मचारियों को 50 करोड़ रुपये का इंसेन्टिव दिया था। यह सिलसिला लगातार जारी रहा, और 2018 में दिवाली पर उन्होंने 600 कर्मचारियों को कार और 900 कर्मचारियों को एफडी दी थी। इसके अलावा, उन्होंने अपने तीन कर्मचारियों को मर्सिडीज बेंज जैसी महंगी कार गिफ्ट की थी, जो कंपनी में 25 साल की सेवा पूरी कर चुके थे।

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