सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

“नया उजाला, चार बूंदों वाला: उजाला ब्रांड के निर्माता एम.पी. रामचंद्रन की प्रेरणादायक कहानी

आया नया उजाला, चार बूंदों वाला! 90 के दशक का यह मशहूर विज्ञापन वाक्य शायद ही किसी ने न सुना हो। कपड़ों को चमकदार सफेदी देने वाला  उजाला नील  वर्षों से भारतीय घरों का भरोसेमंद नाम रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि  उजाला नील  बनाने वाली कंपनी और इसके संस्थापक कौन हैं? इस लोकप्रिय ब्रांड के पीछे हैं  एम.पी. रामचंद्रन , जिनकी प्रेरणादायक कहानी यह साबित करती है कि दृढ़ निश्चय और मेहनत से कोई भी व्यक्ति बड़ी उपलब्धियाँ हासिल कर सकता है। रामचंद्रन ने अपने भाई से 5000 रुपये उधार लेकर जो छोटी सी अस्थायी फैक्ट्री शुरू की थी, वह आज लगभग 1800 करोड़ रुपये के वार्षिक कारोबार वाली मल्टीलेवल ब्रांड कंपनी बन चुकी है। उन्होंने अनोखे उत्पाद तैयार किए और अनेक नवाचार किए। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण का ही परिणाम है कि आज ज्योति लेबोरेटरीज एक प्रतिष्ठित मल्टी ब्रांड कंपनी के रूप में स्थापित है। प्रारंभिक जीवन एम. पी. रामचंद्रन का का जन्म केरल के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। बचपन से ही वे पढ़ाई में मेधावी और जिज्ञासु स्वभाव के थे। उनका झुकाव विज्ञान और प्रयोगों की ओर रहा, जिससे उन...

हेल्थकार्ट के संस्थापक समीर माहेश्वरी की कहानी: मेहनत, लगन और उद्यमिता की मिसाल

अक्सर लोग मानते हैं कि बड़ी सफलता उन्हीं को मिलती है जिनके पास बड़ा नाम, या  बैंक बैलेंस होता है। लेकिन हेल्थकार्ट (HealthKart) के संस्थापक और सीईओ समीर माहेश्वरी की कहानी इस सोच को पूरी तरह गलत साबित करती है। उन्होंने आईआईटी दिल्ली और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल जैसे नामी संस्थानों से पढ़ाई की है। आइए, जानते हैं  समीर माहेश्वरी  की इस प्रेरणादायक सफल यात्रा के बारे में। हेल्थ कार्ट की नींव 1997 में आईआईटी से स्नातक करने के बाद, समीर माहेश्वरी अमेरिका चले गए और वहां के हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से पढ़ाई की और कुछ  वर्षों  तक  इन्वेस्टमेंट बैंकिंग सेक्टर में काम  किया। इसके बाद उन्होंने उद्यमिता (Entrepreneurship) में कदम रखने के उद्देश्य से भारत लौटने का निर्णय लिया। यह भी पढें-   वीबा फूड्स ने कैसे FMCG मार्केट में क्रांति स्थापित किया..पढ़िए सफलता की अनोखी कहानी सैन फ्रांसिस्को में रहने के दौरान उनकी मुलाकात प्रशांत टंडन से हुई। वहीं दोनों ने मिलकर भारत लौटकर उद्यमिता में हाथ आजमाने का फैसला किया। उस समय भारत में स्मार्टफोन का प्रसार तेजी स...

वीबा फूड्स ने कैसे FMCG मार्केट में क्रांति स्थापित किया..पढ़िए सफलता की अनोखी कहानी

   विराज बहल देश के जाने-माने उद्यमी हैं, जो शार्क टैंक इंडिया के चौथे सीजन में नए जज के रूप में शामिल हुए हैं। जजों के पैनल में अमन गुप्ता, अनुपम मित्तल, नमिता थापर, विनीता सिंह और पीयूष बंसल भी शामिल हैं। विराज की कहानी एक साधारण शुरुआत से लेकर एक बड़े फूड बिजनेस तक पहुंचने की है। उन्हें भारत के एफएमसीजी सेक्टर, विशेष रूप से सॉस बनाने वाली कंपनी वीबा फूड्स (Veeba Foods) के संस्थापक और प्रबंध निदेशक के रूप में जाना जाता है। 2013 में स्थापित वीबा फूड्स आज भारतीय फूड इंडस्ट्री का एक प्रमुख ब्रांड बन चुका है और इसने उद्योग को एक नई दिशा दी है। हालांकि, विराज का सफर कभी आसान नहीं रहा। उन्होंने अपने करियर में कई चुनौतियों का सामना किया, जिनमें शुरुआती असफलताएं और आर्थिक कठिनाइयां शामिल थीं। लेकिन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और संघर्षशीलता ने उन्हें सफलता के शिखर तक पहुंचाया। आइए, विराज बहल की प्रेरणादायक सफलता की कहानी को और गहराई से समझते हैं। घर बेचकर नए बिजनेस के लिए जुटाए पैसे विराज का फूड बिजनेस से जुड़ाव बचपन से ही था। वह अक्सर अपने पिता की फैक्ट्री जाया करते थे, जहां उन्होंने फूड ...

भाविश अग्रवाल ने कैसे OLA को बना दिया इंडिया का ब्रांड..पढ़िए रोचक यात्रा

  भारत ने हाल ही में एक बहुत बड़ा बदलाव देखा है, जो बेहद कम समय में हुआ। अब आप इंटरनेट के जरिए किराने का सामान मंगवा सकते हैं, खाना सीधे आपके दरवाजे तक पहुंच सकता है, और बिना गैस पेडल दबाए अपने शहर के सबसे दूरस्थ कोने तक पहुंच सकते हैं। ओला कैब्स, जिसे भाविश अग्रवाल ने सह-स्थापित किया था, अब ओला कंज्यूमर बन चुकी है। इसने भारत में ग्राहकों को लंबी कतारों में खड़े होने, घंटों तक इंतजार करने, या ऑटोवाले द्वारा अनदेखा किए जाने जैसी समस्याओं को हल किया है। इसके अलावा, इसने महिलाओं के लिए दिन के किसी भी समय यात्रा को सुरक्षित बना दिया है। फोटोग्राफी के शौकीन अग्रवाल का सपना भारतीयों को सुरक्षित और भरोसेमंद कैब सेवा प्रदान करना था, और उन्होंने यह सब कम उम्र में ही हासिल किया। अग्रवाल ओला के सह-संस्थापक और सीईओ हैं, और ओला इलेक्ट्रिक के एकमात्र संस्थापक भी हैं। इस सफल कैब सेवा का पहला प्रयोग दिल्ली की सड़कों पर किया गया। भाविश अग्रवाल ने अंकित भाटी के साथ मिलकर ओला की स्थापना की, और इसके बाद जो कुछ भी हुआ, वह इतिहास बन गया। प्रारंभिक जीवन भाविश अग्रवाल, जिन्हें अक्सर मारवाड़ी समझा जाता है,...

इस शख्स ने केवल २००० रुपए उधार लेकर शुरु किया बिजनेस, आज हैं अरबों के मालिक..पढ़िए सफलता की अद्भुत कहानी

 यदि कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो कोई भी आपके रास्ते में बाधा नहीं बन सकता। जो व्यक्ति हार नहीं मानता और निरंतर प्रयास करता रहता है, उसे सफलता अवश्य मिलती है। इसी का एक प्रेरणादायक उदाहरण देश की सबसे बड़ी फार्मा कंपनी Sun Pharmaceutical के संस्थापक और प्रबंध निदेशक, दिलीप सांघवी हैं। एक समय ऐसा था जब दिलीप सांघवी दवाइयों के वितरण का कार्य करते थे। वह फार्मा कंपनियों की दवाइयां लेकर इधर-उधर घूमकर बेचते थे। लेकिन एक दिन उनके मन में विचार आया, "यदि मैं दूसरों की बनाई दवाइयां बेच सकता हूं, तो अपनी खुद की दवाइयां क्यों न बनाऊं?" दिलीप सांघवी का जन्म गुजरात के एक छोटे से शहर, अमरेली में हुआ था। उनका यह निर्णय न केवल उनकी सोच की दिशा बदलने वाला साबित हुआ, बल्कि यह उनकी सफलता की कहानी की नींव भी बना।   शुरुआती जीवन दिलीप सांघवी के पिता का नाम शांतिलाल सांघवी और माता का नाम कुमुद सांघवी है। उनके पिता कोलकाता में जेनेरिक दवाओं के थोक विक्रेता थे। दिलीप की शुरुआती स्कूली शिक्षा कोलकाता में ही पूरी हुई। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स में ग्रेजुएशन किया। दिलीप सांघवी ...

जीवन बीमा एजेंट ने कैसे बनाई साउथ की सबसे बड़ी रियल स्टेट कंपनी..पढ़िए गजब की कहानी।

   कड़ी मेहनत और लगन से दुनिया में कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। यह बात साबित की है दक्षिण भारत की प्रमुख रियल एस्टेट कंपनियों में से एक, हनी ग्रुप के सीएमडी, मुक्का ओबुल रेड्डी ने। उन्हें कोई विरासत में बिजनेस नहीं मिला था, बल्कि अपनी मेहनत और समर्पण के बल पर उन्होंने यह सफलता हासिल की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत इंश्योरेंस एजेंट के रूप में की और धीरे-धीरे सफलता की ऊँचाइयों को छुआ। आज उनकी कंपनी के दक्षिण भारत के कई शहरों में लगभग 500 प्रोजेक्ट चल रहे हैं और कंपनी में करीब पांच सौ कर्मचारी कार्यरत हैं।  मुक्का ओबुल रेड्डी ने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद 2003 में श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय से मार्केटिंग में एमबीए किया। 18 साल की उम्र तक आते-आते ओबुल ने प्रोफेशनल दुनिया में कदम रख लिया था। इतनी कम उम्र में सीखने और अनुभव प्राप्त करने के लिए ओबुल ने कुछ कंपनियों में डोर-टू-डोर सेल्स पर्सन के रूप में काम किया। यह भी पढ़ें-  150 रुपए की नौकरी से करोड़ों की संपत्ति तक..पढ़िए गरीब से अमीर बनने की प्रेरक घटना उनकी शुरुआत सेल्सपर्सन के रूप में हुई, और इ...

150 रुपए की नौकरी से करोड़ों की संपत्ति तक..पढ़िए गरीब से अमीर बनने की प्रेरक घटना

  कहा जाता है कि यदि किसी चीज़ को करने की ठान ली जाए, तो पूरी कायनात भी उसे साकार करने में लग जाती है। साथ ही, अगर कोशिश सच्चाई से की जाए, तो एक दिन व्यक्ति जरूर सफल होता है। क्या आपने कभी सोचा था कि एक व्यक्ति जिसका घर केवल ₹50 से चलता हो, वह कभी करोड़ों का मालिक बन सकता है? शायद नहीं। किसी गरीब की हालत और परेशानियों को देखकर कोई यह नहीं सोच सकता कि वह एक बड़ी कंपनी स्थापित कर सकता है। लेकिन यह सच है। तो आज हम आपको थायरोकेयर टेक्नोलॉजी लिमिटेड के संस्थापक, चेयरमैन और MD ए वेलुमणि की सफलता की कहानी बताएंगे। वह न तो कोई कार रखते हैं और न ही किसी बड़े बंगले में रहते हैं, न ही उन्हें बड़ी गाड़ियों का शौक है और न ही किसी को कुछ दिखाने की कोई चाहत है।   शुरुआती जीवन वेलुमणि का जन्म तमिलनाडु के कोयंबटूर में हुआ था। उनका परिवार बेहद गरीब था, और बहुत छोटी उम्र में उनके पिता उन्हें अकेला छोड़कर इस दुनिया से चले गए थे। इसके बाद उनकी मां पर घर चलाने का भार आ गया। वेलुमणि तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। हालांकि गरीबी को बहुत करीब से देखने के बावजूद, उनकी मां ने उन्हें पढ़ाई से कभ...

अभिषेक लोढ़ा की प्रेरक कहानी: 20 करोड़ के बिजनेस से 1 लाख करोड़ के साम्राज्य तक का सफर

   अभिषेक लोढ़ा एक प्रसिद्ध रियल एस्टेट डेवलपर हैं और उन्हें यह बिजनेस विरासत में मिली थी. अभिषेक लोढ़ा अपने पिता के रियल एस्टेट व्यवसाय में शामिल होने के बाद भी ऐसे कदम उठाए, जिन्होंने उन्हें एक साधारण 'अमीर लड़के' की परंपरागत कहानी से अलग बना दिया। अभिषेक लोढ़ा, लोढ़ा ग्रुप के प्रमोटर हैं और उनका परिवार मैक्रोटेक डेवलपर्स लिमिटेड में एक महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखता है। मैक्रोटेक डेवलपर्स देश के अग्रणी रियल एस्टेट डेवलपर्स में से एक है और अपनी प्रॉपर्टीज को लोढ़ा ब्रांड के तहत बेचता है। अभिषेक लोढ़ा ने एक बड़ा कदम उठाते हुए अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा, जिसकी अनुमानित कीमत लगभग 20,000 करोड़ रुपये है, परमार्थ इकाई लोढ़ा फिलैंथ्रपी फाउंडेशन को दान करने का फैसला किया है। अभिषेक लोढ़ा अभिषेक लोढ़ा, जो मुंबई के प्रतिष्ठित मालाबार हिल से विधायक और लोढ़ा समूह के संस्थापक मंगल प्रभात लोढ़ा के बेटे हैं, ने अपने पिता की तरह वकील बनने के बजाय इंजीनियरिंग को चुना। उन्होंने अमेरिका के जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से औद्योगिक इंजीनियरिंग में स्नातक और परास्नातक किया। स्नातक के बाद, अभिषेक...